फीचर डेस्क
बरसों वे सब साथ रहे. सुबह स्कूल असेंबली के साथ ही उन सब की दिनचर्या शुरू होती और शाम को बजने वाली स्कूल की घंटी के बाद कुछ घंटों के लिए सब अलग हो जाते. लेकिन सुबह फिर वही दिनचर्या बच्चों को पढ़ाना अपने सहयोगियों से हल्की- फुल्की नोकझोंक रूठना- मनाना जैसा क्रम शुरू हो जाता जो वर्षों तक चलता रहा। लेकिन आज सुबह की कुछ गुमसुम सी थी। good morning की रिप्लाई में वह जोश नहीं था क्योंकि कल से सब अपने-अपने रास्तों पर दूर जाने वाले थे. ऐसी दूरी जो भले ही दिलों की ना थी लेकिन मीलों की जरूरत थी. दोबारा कब मुलाकात होगी कोई नहीं जानता था. स्कूल के दर- ओ- दीवार भी आज गुमसुम से लग रहे थे . आखिर लगते भी क्यों नहीं एक लंबे अरसे की पहचान जो हो गई थी इन टीचर्स के साथ। क्योंकि स्कूल की दीवारें भी इन शिक्षकों की आवाज को और स्कूल की सीढ़ियां उनके पैरों की आहट को पहचान लेती थीं. उनके सामने कई छात्र प्रथम कक्षा में यहां आए और जमा दो की पढ़ाई पूरी करके यहां से निकलते गए। ऐसे में स्वाभाविक है कि सभी स्टूडेंट का भी उनसे एक अलग ही रिश्ता बन गया था , एक आत्मीयता का संबंध पैदा हो गया था। यह कहानी है केंद्रीय विद्यालय हमीरपुर के उन 17 शिक्षकों की जिनका एक साथ तबादला अलग अलग राज्य में हो गया था । शाम को स्कूल में विदाई समारोह का आयोजन किया गया लेकिन यह विदाई समारोह किसी जुदाई समारोह से कम नहीं था…
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh