चंद्रविजयी की शाबाशियां : मंगल के बाद चांद पर पहुंचे अब सूरज की तैयारी

24 अगस्त 2023 की यह तारीख भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया है। चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग हो गई है। चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ भारत चंद्रमा पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया है।  इसी के साथ चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। चांद पर पहुंचने के बाद अब सूरज पर पहुंचने की बारी है। बताते हैं कि इसके लिए भी इसरो के वैज्ञानिकों ने तैयारी कर ली है और सितंबर से इस मिशन की रूपरेखा भी तैयार होनी शुरू हो जाएगी।  बताते चलें कि 24 सितंबर 2014 को भारत ने पहले ही प्रयास में मारस  में मंगलयान को उतारा था।

चंदामामा अब दूर के नहीं रहे

चंद्रयान 3 लैंडिंग को लेकर हर भारतीय एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं और इस बात की खुशी जाहिर कर रहे हैं कि अब चांद पर भी भारतीय तिरंगा दिखाई देगा। इस खुशी के मौके पर कई लोग एक-दूसरे को मैसेज के माध्यम से भी बधाई दें रहे हैं।  वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान की सफल लैंडिंग के बाद कहा कि चंदा मामा अब दूर के नहीं रहे.

चंद्रयान 3 के मुख्य उद्देश्यों पर एक नजर

इसरो के बताए गए विवरण के मुताबिक, चंद्रयान-3 के लिए मुख्य रूप से तीन उद्देश्य निर्धारित हैं.

  • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना
  • चंद्रमा की सतह कही जाने वाली रेजोलिथ पर लैंडर को उतारना और घुमाना
  • लैंडर और रोवर्स से चंद्रमा की सतह पर शोध कराना

चंद्रयान-2 में आई तकनीकी खामियों को दूर करते हुए लैंडर को अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया गया है.

प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर्स सात तरह के उपकरणों से लैस हैं. इनमें लैंडर पर चार, रोवर पर दो और प्रोपल्शन मॉड्यूल पर एक तकनीक शामिल है.

चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ इसरो ने लैंडर मॉड्यूल के हिस्से के रूप में लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को भी भेजा था.

हालाँकि चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन ऑर्बिटर लगभग चार वर्षों से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है.

इसीलिए इस बार इसरो ने चंद्रयान-3 में सिर्फ़ लैंडर और रोवर ही भेजा है. यानी चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रयान-2 पर लॉन्च किए गए ऑर्बिटर के साथ संवाद स्थापित करेगा.

रोवर मॉड्यूल का काम क्या होगा

चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 में मुख्य घटक रोवर है. चंद्रमा पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर उसमें से निकलेगा और चंद्रमा की सतह पर घूमकर शोध करेगा, जानकारी जुटाएगा.

चंद्रयान-3 के रोवर का वजन केवल 26 किलोग्राम है. इसमें छह पहिए लगे हुए हैं. इसमें बिजली उत्पादन के लिए सोलर पैनल के साथ बैटरी भी शामिल है.

91.7 सेमी लंबा, 75 सेमी चौड़ा और 39.7 सेमी ऊंचा, रोवर अपने छह पहियों की मदद से चंद्र सतह पर चलेगा. छोटे आकार और अन्य चुनौतियों के चलते रोवर केवल लैंडर के साथ संचार कर सकता है.

इसका मतलब है कि अगर यह एकत्र की गई जानकारी लैंडर को भेजता है, तो लैंडर इसे भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा.

रोवर में दो प्रमुख उपकरण हैं.

उनमें से पहला एलआईबीएस यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप ही मुख्य है. यह एक अत्याधुनिक विधि है जिसका उपयोग किसी स्थान पर तत्वों और उनके गुणों की पहचान करने के लिए किया जाता है.

यह उपकरण चंद्रमा की सतह पर बहुत तीव्र लेजर फायर करेगा, इसके चलते सतह की मिट्टी तुरंत पिघल कर प्रकाश उत्सर्जित करेगी. इसके वेबलेंथ का विश्लेषण करके एलआईबीएस सतह पर मौजूद रासायनिक तत्वों और सामग्रियों की पहचान करेगा.

रोवर पर स्थापित यह एलआईबीएस उपकरण चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन जैसे तत्वों की उपस्थिति का पता लगाएगा.

चंद्रमा पर जारी अंतरिक्ष अभियानों का यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. एलआईबीएस चंद्रमा की सतह पर 14 दिन बिताएगा और विभिन्न स्थानों पर विश्लेषण किए गए डेटा को लैंडर तक पहुंचाएगा. लैंडर उस जानकारी को भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा. इस डेटा का विश्लेषण करके इसरो चंद्रमा की सतह पर तत्वों की पहचान करेगा.

रोवर पर लगा एक अन्य उपकरण एपीएक्सएस यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह चंद्रमा की सतह पर मिट्टी और चट्टानों में प्रचुर मात्रा में रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा.

यह चंद्रमा की सतह और उसकी मिट्टी के बारे में हमारी समझ को बढ़ाकर भविष्य के प्रयोगों को और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ाने का रास्ता तैयार करेगा.

ऐसा ही एक उपकरण नासा के मंगल ग्रह पर भेजे गए क्यूरियोसिटी जैसे रोवर्स में भी लगाया गया था.

Khabar Logy
Author: Khabar Logy

Himachal Pradesh

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