संडे स्पेशल में आज हम बात करेंगे नूरी की। कइयों को सुनने में थोड़ा अटपटा सा लगेगा लेकिन यह धुन आपको कुछ याद करवाएगी.
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Noori
1979 में सिनेमा जगत में एक फिल्म आई थी नूरी. इस फिल्म की शूटिंग जम्मू कश्मीर के भदरवाह में हुई थी. बताते हैं कि जब फिल्म की शूटिंग हो रही थी तो भादरवाह में तापमान माइनस में चल रहा था. फिल्म के अभिनेता रहे फारुख शेख ने भी एक साक्षात्कार में इसका जिक्र किया था। फिल्म में पूनम ढिल्लों ने बतौर अभिनेत्री अपना किरदार निभाया था। कहते हैं कि उस वक्त की यह सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्म थी . और भी रोचक बात यह है कि इस फिल्म के बाद भादरवाह में पैदा होने वाली अधिकतर बेटियों के नाम भी लोगों ने नूरी रख दिए थे . यह तो था फिल्म का एक पहलू . यथार्थ की बात करें तो नूरी पश्मीना गोट का एक क्लोन है जिसकी ऊन पशमीला शॉल बनाने के काम आती है. इस नूरी से ऐसी उम्मीद बंधी थी कि पशमीना का व्यवसाय पूरी दुनिया में चलेगा और यह उद्योग मालामाल कर देगा । लेकिन ऐसा हो ना सका जहां हिंदी मूवी नूरी ने सिनेमा जगत को मालामाल कर दिया वही नूरी पशमीना गोट उद्योग जगत को बेनूर कर गई . हिमाचल दस्तक के एडिटर हेमंत कुमार ने जम्मू कश्मीर में काफी वक्त बिताया है . नूरी को लेकर उन्होंने एक संस्मरण लिखा है उम्मीद है आपको पसंद आएगा…
नूरी का चले जाना…
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आज एक मित्र का फोन आया कि पश्मीना शॉल लेना चाहते हैं। कहां से अच्छी मिलेगी और कितने की। मुझे ताजा कीमत की जानकारी नहीं थी। पश्मीना शॉल की कीमत हजारों से शुरू होती है और लाखों तक जाती है। खैर रेट को लेकर कश्मीर के कुछ नंबर खंगालने लगा। इसी चक्कर में पता चला कि पश्मीना गोट का पहला क्लोन नूरी नहीं रही। करीब दो महीने पहले नूरी की मौत हो गई है। कश्मीर बहुत कम बात होती हैं पुराने साथियों से सो इस खबर का मुझे पता ही नहीं चला। एकदम से आंखों के सामने बहुत से दृश्य आ गए। ग्यारह साल पीछे चला गया मैं।
दुनिया में पहली बार कश्मीर के विज्ञानियों ने पश्मीना बकरी का क्लोन बनाने में सफलता हासिल की थी । वर्ष 2012 में। पश्मीना गोट की संख्या घटती जा रही है सो इस क्लोन को एक पश्मीना उद्योग के लिए क्रांतिकारी माना गया था। दुनिया भर में इसकी चर्चा हुई।
जब नूरी हुई तो मेरा तबादला जम्मू कश्मीर से चंडीगढ़ हो गया था। लेकिन नूरी पर विस्तृत स्टोरी बनाने के लिए मुझे ही कश्मीर भेजा गया। तब नूरी कुछ ही दिनों की थीं।
नूरी का अभियान शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी के डॉ. रियाज शाह के निर्देशन में ही हुआ था। मैं सीधा उनके पास गया और करीब आधा दिन उनके साथ रहा। इसकी तकनीक को समझा। मसलन क्लोन किस तरह तैयार होता है आदि। डॉ. रियाज ने इतने बढि़या तरीके से समझाया कि मैं उस पर अच्छे से स्टोरी तैयार कर सका। नूरी को गोद में लेकर फोटो भी खिंचवाई। डॉ. रियाज ने बताया कि नूरी नाम सुपहिट फिल्म नूरी के आधार पर रखा गया था। नूरी की शूटिंग जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में हुई थी।
खैर पश्मीना उद्योग कैसे बदलेगा, इसे लेकर श्रीनगर में कारोबारी संगठनों के प्रमुखों से बात भी की। तब बहुत बड़ी बातें की गई थीं लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। हां नूरी ने सात मेमनों को जन्म दिया। बताते हैं चार अभी भी जिंदा हैं और स्वस्थ हैं।
पश्मीना गोट खास तौर पर लद्दाख क्षेत्र में होती हैं। कश्मीर में हजारों परिवार पश्मीना शॉल के कारोबार से जुड़े हुए हैं। लेकिन अभी भी हम पश्मीना का ज्यादा आयात चीन से करते हैं। माना जा रहा था कि क्लोनिंग के बाद हमारे देश में जोरदार बदलाव आएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बताते हैं कि बौद्ध मान्यताओं ने क्लोन तकनीक के व्यापक इस्तेमाल को रोक दिया।
बहरहाल नूरी एक ऐतिहासिक घटना थी। दुख की बात यह है कि मीडिया में नूरी के पैदा होने की खबरें जिस तरह से देश भर के मीडिया में सुर्खियां बनी थीं, मौत की खबर वैसी जगह नहीं ले पाई।
आभार…
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh