सत्ता परिवर्तन होने के बाद सब मुख्यमंत्रियों को कोई न कोई सियासी दिक्कतें रही हैं। लेकिन प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू को इन सियासी दिक्कतों के साथ-साथ आसमानी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा है। शपथ लेते ही बरमाणा ट्रक ऑप्रेटरों का विवाद सुलझा तो बरसात ने प्रदेश का जर्रा-जर्रा हिला दिया। ऊपर से प्रदेश की माली हालत बाजवूद इसके सुक्खू बिना रुके, बिना थके आगे बढ़ रहे हैं। शनिवार को उन्होंने कुल्लू जिला से आपदा प्रभावितों के पुनर्वास की शुरुआत भी कर दी और 324 परिवारों को मकान बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में तीन-तीन लाख रुपए उनके खातों में डाले, ऐसे में मुख्यमंत्री का एक मानवीय चेहरा जनता के बीच तो आया ही है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। बाकी प्रधान वाली इमेज दो सुखविंदर सिंह की पहले से ही है। अब इस नए चेहरे और इमेज वाले मुख्यमंत्री को जाहिर तौर पर सियासी फायदा तो हो ही रहा है और प्रदेश को भी फायदा होगा ऐसा अनुमान अब लगने लगा है….
हिमाचल दस्तक के संपादक हेमंत कुमार ने अभी हाल ही में नाम है सुक्खू हेडलाइन से एक लेख प्रकाशित किया है। आप भी पढि़ए और हो सके तो अपनी राय भी दीजिए…..
नाम है सुक्खू…
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कोई भी बदलाव तनाव लाता है। वो तनाव सियासी हो तो सरेआम नज़र भी आता है। हिमाचल और पंजाब कांग्रेस में देख लें। बदलाव के बाद खूब सारा तनाव पसरा पड़ा है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और हिमाचल में राजा वीरभद्र सिंह ही “आला” भी थे और “कमान” भी। वैसे दिल्ली दूर होती है लेकिन कांग्रेस आलाकमान के लिए तब पंजाब और हिमाचल पहुंच से बाहर थे। पंजाब में कैप्टन पहले खुड्उेलाइन लगे और फिर मजबूरी में पार्टी से किनारा ही करना पड़ा। लेकिन पार्टी की बैंड बज गई। जिस गाजे बाजे के साथ कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को पार्टी सौंपी और चन्नी को चन्न ते बैठाया, उसी लय के साथ पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। हिमाचल में भी राजा साहब के जाने के बाद बहुत कुछ बदल गया।
हिमाचल की कहानी थोड़ी अलग है। मजेदार भी। इसके केंद्र में हैं सुखविंद्र सिंह सुक्खू। नाम का मतलब होता है खुशी देने वाला हो। पंजाबी में स्टाइलिश बंदे को भी बोलते हैं। साल होने को है सीएम बने हुए। सुख किस किस को मिला उसकी बात अलग। लेकिन कांग्रेस के भीतर कई नेताओं का दुख स्पष्ट दिखता है। इन पर सुक्खू ने जरा भी रहम नहीं खाया। घर बैठा दिए कई तो। वैसे एक जमाने में यही कांग्रेसी उन्हें सुक्खू-दुक्खू भी कहते थे। सुखविंदर सुक्खू ने भी वक्त आने पर साबित कर दिया है कि वे सुक्खू और दुक्खू दोनो ही है।
कवि गीत चतुर्वेदी कहते हैं-जिया हुआ प्रेम/ और सुना हुआ संगीत/ लौटकर जरूर आता है। सुक्खू ने जो प्रेमभाव दिल्ली के प्रति रखा उससे वे जरा भी डिगे नहीं। प्रदेश में उनकी सियासी गाड़ी के कई बार तो ब्रेक फेल कर दिए। उनके रास्ते में आगे चढ़ाई है, उतराई है, तीखे मोड़ हैं या गहरी खाई है जैसे साइन कहीं भी नहीं रखे गए। लेकिन दिल्ली के प्रति उनकी लगन कम नहीं हुई। सो ये जिया हुआ प्रेम उन्हें वापस मिला है सीएम के रूप में। दूसरी ओर अपनी ही पार्टी के सत्ता में होने पर भी उन्हें कैसे ट्रीट किया गया, ये उन्हीं का दिल जानता है। लेकिन संगठन को उन्होंने फिर भी अपनी तरह से चलाया। इस चक्कर में वे सत्ता का ककहरा तो नहीं समझ पाए लेकिन सियासत के सारे पहाड़े उन्हें याद हो गए। वैसे 1 से 12 तक के पहाड़े याद हो जाते हैं। मुश्किल होते हैं 13 से 19 तक के पहाड़े। वे 2013 से 2019 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। जानबूझ कर उनसे 13 से 19 के पहाड़े बार बार सुने गए। सुक्खू ने भी ठान ली और सरकारी स्कूलों की तरह गा गा कर सब याद कर लिया। छह साल का वो संगीत भी लौट कर आया और सीएम बनने के बाद काम आ रहा है।
एक बात और। पिछले पांच साल से फ्रंट फुट पर मुकेश अग्निहोत्री थे। लेकिन कई ज्ञात-अज्ञात कारणों से आलाकमान को मुकेश का “रथ” रोकना पड़ा। सियासत में भैंस मायने नहीं रखती। मायने रखती है लाठी। और लाठी थी सुखविंद्र सिंह सुक्खू के हाथ में। बस आगे आप समझ ही गए होंगे।
वक्त का तकाजा देखिये कि जब वीरभद्र सिंह सीएम थे तो सुक्खू कांग्रेस के अध्यक्ष। आज सुक्खू सीएम है और राजा वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह जी कांग्रेस की अक्ष्यक्ष। हालांकि कई मोर्चे पहले से भी ज्यादा खुले हुए हैं सुक्खू के सामने। बहरहाल किसी का भी मुस्तिकबिल सिर्फ उसकी परफॉरमेंस पर ही निर्भर होता है। दूसरा सयाने कह गए हैं कि बारिश की बूंदे नर्म मिट्टी पर ही असर करती है। सो “प्रधान जी” वाली इमेज से आगे की दुनिया भी देखनी पड़ेगी। बाकी रही लाठी की बात तो इस समय कांग्रेस में दूर दूर तक कोई “लठैत” दिख नहीं रहा है। जो थोड़े बहुत थे भी वे घर बैठा दिए गए हैं। सो लाठी सुक्खू के ही हाथ में है।
वहीं पंजाब में तो तनाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। अब कांग्रेस और अन्य दलों ने “इंडिया” बना रखा है। लेकिन पंजाब में कांग्रेसी नेता आम आदमी पार्टी का नाम नहीं सुनना चाहते। मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ना तो दूर की बात। इसकी कहानी इतनी है कि कैप्टन के सामने हाइकमान ने हमेशा ही कमजोर मोहरे रखे। सब कैप्टन के आगे टें बोलते गए। वहां उन्हें कोई सुखविंदर सिंह नहीं मिला।
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh