Sunday Special में इस बार आपको हिमाचल दस्तक के मुख्य संपादक हेमंत कुमार जी की कलम से अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म रही पाकीज़ा के गीत से संबंधित कुछ जानकारी देने का प्रयास करेंगे….
दो दिन पहले एक आर्टिकल पढ़ रहा था रंगरेज़ को लेकर। कपड़ा रंगने वाले। एक ज़माने में बाजार का अहम हिस्सा थे। अब ये इतिहास की बातें हो चली हैं। शायद किसी समय रंगीन कपड़े महंगे होते होंगे। सो इनकी मार्केट चल रही थी।
पढ़ते समय जेहन में आए दो मशहूर गीत। इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा…। हमरी न मानो रंगरेज़वा से पूछो। जिसने गुलाबी रंग दीना दुपट्टा मेरा। फिल्म पाकीज़ा का यह गीत 50 साल बाद भी उसी तरह कर्णप्रिय बना हुआ है। दूसरा एक दशक पहले आई तनु वेड्स मनु का गीत-ऐ रंगरेज़ मेरे/ ये बात बता रंगरेज़ मेरे/ ये कौन से पानी में तुने/ कौन सा रंग घोला/ के दिल बन गया सौदाई/ मेरा बसंती चोला…..। राजशेखर ने कमाल का गीत लिखा है और वडाली ब्रदर्ज ने इसे गाया भी वैसा ही है। उस समय मेरी गाड़ी में ये सबसे ज्यादा बजने वाला गीत था।
इन्हीं लोगों ने ले लीना, गीत ब्लैक एंड व्हाइट और रंगीन दोनो तरह से मिलता है। असल में फिल्मकार कमाल अमरोही और अभिनेत्री मीना कुमारी के रिश्ते इस फिल्म में ऐसे बने बिगड़े कि फिल्म शुरू तो हुई 1956 में और रिलीज हुई 16 साल बाद 1972 में।
मैनें घर जाते समय कार में इन्हीं लोगों ने ले लीना, गीत यूट्यूब पर लगा दिया लेकिन हैरानी हुई कि किसी पुरुष की आवाज थी। कुछेक शब्द भी आगे पीछे थे। जबकि मैने तो लता जी का ही गीत सुना था। घर पहुंच कर सब से पहले यही मसला हल करना था। पता चला ये गीत कई फिल्मों में इस्तेमाल हुआ है। हमरी- मोरी जैसे मामूली बदलाव के साथ। कई गीतकारों ने इसका क्रेडिट भी ले लिया। संगीतकारों ने भी ऐसा ही किया। जो गीत मैने सुना उसे अभिनेता/गायक याकूब ने गाया था।
असल में पाकीज़ा के अलावा इसे दो अन्य फिल्मों में भी इस्तेमाल किया गया। किस्मत (1941) और फिल्म आबरू (1943) में। मजे की बात देखें कि पाकीज़ा में गीतकार का नाम आता है मजरूह सुल्तानपुरी का। संगीतकार थे गुलाम मोहम्मद। गाया लता जी ने। वहीं किस्मत फिल्म में गीतकार थे अजीज कश्मीरी और संगीतकार पंडित गोबिंदराम। गाया था शमशाद बेगम ने। इसी प्रकार आबरू फिल्म में गीतकार का नाम तो आता नहीं लेकिन संगीत गोबिंदराम का ही है। गाया अभिनेता याकूब ने।
मुझे बात रोचक लगी तो थोड़ी पड़ताल के बाद यही गीत एक अलग धुन में यूट्यूब पर मिल गया। वर्ष 1918 में इसे गाया था लखनऊ की अख्तरी जान ने। मुखड़ा जस का तस। अंतरे ऐसे हैं- न जानो रंगरेज़वा से पूछो जिसने गुलाबी रंग दीना दुपट्टा मेरा ।… न जानो बजजवा से पूछो जिसने अशर्फी गज दीना….। आखिरी अंतरा है …न जानो मोरे सैंया से पूछो, जिसने ओढ़ा के मजा लीना दुपट्टा मेरा।
1941 की फिल्म किस्मत में बदलाव किया … मोरी न मानो रंगरेज़वा से पूछो व मोरी न मानो बजजवा से पूछो। अब मोरी डाल कर ये गीत हो गया अजीज कश्मीरी के नाम। तीसरे अंतरे में किया गया है-मोरी न मानो पड़ोसन से पू्छो/ जिसने हंसी हंसी में छीना दुपट्टा मेरा….।
1943 में शब्द मोरी ही रहने दिया। बस तीसरा अंतरा अख्तरी जान वाला ही लिया गया। इन दोनो फिल्मों और अख्तरी जान के गीत को मशहूरी नहीं मिली। देश के लोगों की जुबान पर चढ़ा 1972 में आई पाकीज़ा का गीत। अब देखें कि मजरूह सुल्तानपुरी ने क्या “बदलाव” किए अंतरों में-
हमरी न मारो रंगरेजवा से पूछो….। मोरी का हमरी किया बस। दूसरे अंतरे में भी हमरी न मानो बजजवा से पूछो। यहां भी मोरी का हमरी किया। आखिरी अंतरे में बदला- हमरी न मानो सिपहिया से पूछो, जिसने बजरिया में छीना दुपट्टा मेरा। यहां सैंया का सिपहिया हो गया। अजीज कश्मीरी ने पड़ोसन किया था इन्होंने सिपहिया कर दिया।
अब लाख टके का सवाल यह कि यह गीत असल में लिखा तो किसने लिखा? हमरी से मोरी या सैंया से सिपहिया करने वाले गीतकार तो इसके रचयिता थे नहीं। क्या ये कोई लोकगीत है? एक दो जगह कहीं आता है कि इसे अमीर खुसरो ने लिखा था। लेकिन इसके प्रमाण नहीं मिलते।
जो भी हो गीत तो कालजयी है। अब मशहूर गीतकारों ने इसमें अपना नाम क्यों घुसाया ये पता नहीं। एक बात और। उक्त तीन फिल्मों की धुन को भी कई गानों में कॉपी किया गया। बोल कुछ और थे। मसलन –दिल की कदर नहीं जानी , वो जाने वाले(सरताज 1950), लहंगा मंगा दे मेरे बाबू, मंगवा दे रे छैला आज नैनी ताल से (बेटी 1969) और .. दिल न किसी का जाए, जान जाए तो जाए (क्षत्रिय 1993)। इनके अलावा भी हो सकते हैं।
गीत किसका है पता नहीं। धुन भी इतनी फिल्मों में कॉपी हो गई। ऐसा शायद ही हिंदी सिनेमा में किसी गीत के साथ हुआ होगा। आपको भी इसके असली गीतकार का पता चले तो जरूर बताना।
साभार….
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh