हमीरपुर. 22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में बहुत ही खास होने वाला है। यह वो दिन है जब रामलला अयोध्या राम मंदिर में विराजित होंगे। इस ऐतिहासिक क्षण का पूरा देश तो बेसब्री से इंतजार कर रहा है लेकिन उन महान कारसेवकों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार है जिन्होंने इस धार्मिक स्थान पर वर्ष 1992 में पहुंचकर सोलहवीं सदी में बनाई गई बाबरी मस्जिद को गिराने में न केवल अपना योगदान दिया बल्कि लाठियां भी खाईं और जेलों में भी बंद रहे। इन्हीं कार सेवकों में से एक सुजानपुर से संबंध रखने वाले सुरुचि शर्मा भी हैं जो 18 साल की आयु में अपने विश्व हिंदू परिषद के साथियों साथियों के साथ घर से यह कहकर रवाना हुआ थे कि ‘मां जब तक मैं अयोध्या से न लौटकर न आऊं खाने में हींग मत डालनाÓ। अपने 18 साल के बेटे को घर से अकेले जाता देख मां रजनीश प्रभा शर्मा की आंखें भर आईं थीं। यही नहीं सुरुचि शर्मा ने यहां तक कह दिया था कि यदि मुझे कुछ हो भी जाए तो फिक्र मत करना क्योंकि घर में बड़ा भाई भी है। जिस तरह से उस वक्त अयोध्या के हालात थे तो परिजनों को संशय था कि बेटा लौटेगा भी या नहीं। क्योंकि पूरा देश जान चुका था कि वहां लाठियों के साथ गोलियां भी चलेंगी। सुरुचि शर्मा के पिता रोशन शर्मा जोकि खुद जनसंघी थे उन्होंने अपने आंसुओं को छिपाते हुए बेटे को विदाई दी थी क्योंकि बेटे में देशभक्ति का जज्बा आया ही उनसे था। सुरुचि बताते हैं कि वे 1980 से ही संघ से जुड़ गए थे और पिता की अंगुली पकड़कर शाखा में जाते थे। खैर सुरुचि 1992 में चमनेड़ निवासी चिरंजी लाल नादौन निवासी सोहन लाल, कांगू के ओमप्रकाश और बिलासपुर से विमला दीदी के साथ माता-पिता का आशीर्वाद लेकर अयोध्या के लिए रवाना हो गए।
पांच दिसंबर की शाम को वे अयोध्या पहुंचे थे, जहां हजारों कार सेवकों की भीड़ थी। कोर्ट से स्टे का आदेश मिलने की सूचना के बाद विहिप और संघ के लोगों ने आदेशों को दरकिनार कर 6 दिसंबर को विवादित ढांचा तोडऩा शुरू कर दिया था। सुरुचि कहते हैं कि उन्होंने लोह के औजार से ढांचा गिराना शुरू किया। इस बीच जब वैरिगेट्स तोड़कर वे आगे निकले तो सुरक्षा बलों ने उन पर लाठियां चला दीं। वे कहते हैं कि भीड़ पर लाठियां बरसती रहीं लेकिन ज मों की परवाह किए बगैर सब ढांचा गिराने में लगे रहे। ढांचा गिराये जाने के बाद ज मों पर गौर किया तो पीड़ा का एहसास हुआ लेकिन मन में सुकून था कि जिस काम के लिए आए थे पूरा हो चुका था। उसके बाद वे वापस सुजानपुर लौटे तो घर में खाने में हींग डाला गया। सुरुचि बताते हैं अयोध्या से आने के बाद उनका मन मस्तिष्क पूरी तरह से बदल चुका था। पिता जी के साथ दुकानदारी में मन नहीं लगता था। अपना संपूर्ण देश को अर्पित करने के भाव पैदा हो चुके थे। सुरुचि बताते हैं कि लोग मां से कहते थे यह लड़का बाबा बन जाएगा। सुरुचि बताते हैं कि उन्होंने ग्रजुऐशन पूरी करने के बाद पैंट पहनना छोड़ दिया था और हमेशा धोती में ही रहते थे। वे बताते हैं कि 2001 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का अपना संकल्प दोहराया जो वे एक बार फिर आयोध्या में तनाव बढ़ा तो वे दोबारा अयोध्या गए इस बार उन्हें उनके साथियों के साथ दो रातें जेल में रखा गया। उसके बाद देश में अमृत क्लश यात्राएं निकलीं तो उन्हें भी एक क्लश दिया गया जिसमें त्रिवेणी का जल था। वो क्लश अब भी उनके पास मौजूद है।
मां के चरण स्पर्श करके तीसरी बार जाएंगे अयोध्या
वर्तमान में सुरुचि विहिप के सोलन विभाग में विशेष संपर्क प्रमुख हैं और बद्दी में अपना कारोबार करते हैं। वह कहते हैं कि 21 को वे हमीरपुर आ रहे हैं। 22 को मां के चरण स्पर्श करके यहां से वापस जाएंगे और तीसरी बार 4 फरवरी को उस दिव्य अमृत क्लश को साथ लेकर आयोध्या के लिए रवाना होंगे और पांच को अयोध्या पहुंच जाएंगे।
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh