सोलन. #Jatoli Mhadev Mandir... देवभूमि कहे जाने वाले पहाड़ी राज्य हिमाचल का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जहां देवी देवताओं का वास ना हो. इस पावन धरा पर सुसज्जित देवालयों और खासकर शिवालयों का कोई ना कोई इतिहास रहा है. देवभूमि के यह मंदिर अपनी सुंदरता के साथ-साथ लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र भी वर्षों से बने हुए हैं. ऐसे ही शिवालियों में शुमार है सोलन जिले का जटोली महादेव शिव मंदिर. जटोली शिव मंदिर भारत का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर हैं। इसकी ऊंचाई लगभग 111 फुट है। 2013 में इसे दर्शनार्थ खोला गया था। यहां दूर-दूर से भक्त, भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। यहां महाशिवरात्रि के दिन अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए भारी संख्या में शिव भक्त उमड़ते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से भी यह एक अद्भुत मंदिर है।
जटोली मंदिर, राजगढ़ रोड पर स्थित है, और यह सोलन से लगभग 8 किमी दूर है। इस मंदिर को लेकर ये मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय के लिए रहे थे। बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए, जिनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। साल 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी। हालांकि, साल 1983 में उन्होंने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य रूका नहीं बल्कि इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी।
जटोली शिव मंदिर में एक हैरान कर देने वाली विशेषता यह है कि इसके पत्थरों को थपथपाने से डमरू की आवाज आती है। यह मंदिर दक्षिण-द्रविड़ शैली में बना हुआ है। इसे बनाने में पूरे 39 वर्ष का समय लगा था। मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है।
इस मंदिर में हर तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं।
जटोली मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय के लिए यहां रहे थे। बाद में सिद्ध बाबा श्रीश्री 1008 स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां आकर तपस्या की। उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा भी है।
मंदिर के पूर्वोत्तर कोने पर एक पवित्र सरोवर है, जिसे ‘जल कुंड’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर के पानी में कुछ औषधीय गुण हैं, जो त्वचा रोगों का इलाज कर सकते हैं।यह मंदिर अपने वार्षिक मेले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो महाशिवरात्रि के त्यौहार के दौरान आयोजित किया जाता है। मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh