हमीरपुर. श्मशानघाट या मोक्षधाम, वो स्थल जहां शवों को चिता पर जलाने के लिए लाया जाता है। यह अकसर नदी के किनारे होते हैं। जनश्रुति के अनुसार इन स्थलों पर रात तो क्या दिन के समय भी नहीं जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यहां भूत-प्रेतों और आत्माएं विचरण करती हैं इसलिए लोग यहां अकेले जाने से डरते हैं। शायद यही वजह है कि श्मशानघाटों में खामोशी और सन्नाटा रहता है। किसी प्राणी की मृत्यू हो जाने पर ही यहां एक साथ काफी लोग नजर आते हैं। यानि अकेले आने से लोग कतराते हैं। लेकिन हमीरपुर के एक शख्स पवन सोनी (56) ऐसे हैं जिनका श्मशानघाट के साथ अजीब सा नाता हो गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि उनका मोक्षधाम से यह नाता कोई नया नहीं है बल्कि करीब 9 साल से हर माह वे श्मशानघाट जाते हैं और पूरे एरिया की सफाई करते हैं। सुनकर जरूर विचित्र लगेगा लेकिन यह सच है। दरअसल उनका मानना है कि मंदिर हो, शहर हो, गार्डन हो वहां तो सब लोग हर तरह की एक्टिविटी में पहुंच जाते हैं लेकिन मोक्षधाम की याद सिर्फ तभी आती है जब किसी की मृत्यु होती है। जबकि एक दिन सबको इसी जगह पर आना है।
जानकारी के अनुसार पवन सोनी को आज से करीब 9 साल पहले 15 अगस्त 2015 को घर में बैठे-बैठे विचार आया कि सब जगह की सफाई लोग करते हैं लेकिन उस जगह की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता जहां एक रोज सबको जाना है। रविवार को दिन था और उन्होंने हमीरपुर शहर की हथली खड्ड के किनारे बने मोक्षधाम पर जाने का फैसला किया। परिवार वालों ने मना किया लेकिन दिमाग में एक धुन सवार हो गई थी कि जाना है। उसके बाद उन्होंने महीने के पहले रविवार को मोक्षधाम की सफाई करने का प्रण ले लिया फिर चाहे मौसम सर्दी का हो ,बरसात का हो या फिर गर्मी का वे लगातार वहां जाते हैं और पूरे मोक्षधाम की साफ-सफाई करके आते हैं। पवन सोनी के अनुसार शुरू-शुरू में उनके परिवार ने इस बात का बहुत विरोध भी किया लेकिन बाद में उन्होंने मुझे कभी नहीं रोका।
वह बताते हैं कि उन्होंने कई बार दूसरे लोगों से भी बात की कि आप भी मेरे साथ चला करो लेकिन वे हर बार टालमटोल कर जाते हैं। शायद इसकी वजह भय हो सकता है या फिर उनके परिवार वाले भी उन्हें वहां जाने से रोकते होंगे। जबकि पवन सोनी की मानें तो यहां साफ-सफाई करके मन को बड़ी शांति मिलती है। जहां तक भूत-प्रेत की बात है तो उन्हें इन 9 वर्षों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला या उनके साथ ऐसा कुछ घटित नहीं हुआ कि वे यहां जाने से डरते। पवन सोनी हमीरपुर के वार्ड नंबर 9 में रहते हैं और भोरंज के भरेड़ी में ज्वेलरी का काम करते हैं। पवन सोनी की मानें तो वे महीने में एक बार चिल्ड्रन पार्क अणु की सफाई करने भी जाते हैं लेकिन तब उनके साथ अन्य दोस्त भी होते हैं।
शांतनू हैं लावारिस शवों का कंधा
विदित रहे कि हमीरपुर के शांतनू का लावारिस शवों से एक अजीब से नाता है। वे पिछले करीब 20 वर्षों से हथली खड्ड के किनारे बने इस मोक्षधाम में आजतक सैकड़ों लावारिस शवों का न केवल अंतिम संस्कार कर चुके हैं बल्कि अपने खर्चे पर उनका पूरा किरया करम करके उनकी अस्थियों को हरिद्वार लेजाकर विसर्जित भी करते हैं। उन्हें कई समाजसेवी संगठनों द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। शांतून मूल रूप से कोलकाता के रहने वाले हैं लेकिन पिछले वर्ष 1980 से हमीरपुर में रह रहे हैं।
बहुत बड़ा है हथली खड्ड का मोक्षधाम
हमीरपुर के हथली खड्ड किनारे बना यह श्मशानघाट बहुत बड़ा है। यहां शहर के 11 वार्डों और आसपास की पंचायतों के मृतकों को अंतिम संस्कार के लिए लाया जाता है। कोरोना काल के दौरान असमायिक काल का ग्रास बने लोकल और बाहरी लोगों का भी प्रशासन की देखरेख में इसी मोक्षधाम में अंतिम संस्कार किया गया था। उस दौरान कई बार दिन में एक साथ कई शवों का यहां अंतिम संस्कार होता रहा था।
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh