तब प्रदेश में बहती नदियों के धारे भारी भरकम लकड़ी के ठेलों को पहुंचाने में होते थे मददगार

फीचर. डेस्क

आज इंसान हर तरह से सुविधा संपन्न हो गया है । आज हमें चाहे खुद कहीं जाना हो या कोई समान इत्यादि लाना या ले जाना हो तो यातायात के कई साधन उपलब्ध हैं. लेकिन जरा सोचिए वर्षों पहले जब इंसान के पास यह संपूर्ण सुविधा नहीं थी तो भला भारी भरकम समान को खास कर हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में लाना या ले जाना कितनी चुनौती भरा रहता होगा . इसी बात का उत्तर देने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे पास हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू का एक फोटो उपलब्ध हुआ है । इस फोटो में बताया गया है कि जब कुल्लू में सड़कों की कमी थी तो नदी से इस तरह लकड़ी को गंतव्य तक पहुंचाया जाता था। लकड़ी को एक के बाद एक करके नदी के जल प्रवाह के साथ छोड़ा जाता था। जहां नदी का प्रवाह कम होता या नदी फैली होती तो वहां लकड़ी का डक (ढेर) बन जाता था। इस प्रक्रिया को घाल कहते थे और लकड़ी प्रवाहित करने वाले व्यक्तियों को घालू कहते थे।यह तस्वीर 1971 की है जो कुल्लू शहर के समीप की है। उस समय लगघाटी से इसी प्रकिया से कुल्लू शहर तक ईमारती लकड़ी पहुंचाई जाती थी।

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Author: Khabar Logy

Himachal Pradesh

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