Hansraj Raguvanshi का संघर्ष का वो दौर जब वे कैंटीन में काम करते थे

स्पेशल स्टोरी
सबना दा रखवाला ओ शिवजी डमरुआं वाला, शिव समा रहे मुझमें, राधे-रोधे, लागी लग्र मेरे शंकरा, डमरू बजाया, शिव कैलाशों के वासी, श्याम संग प्रीत, गंगा किनारे सहित दर्जनों गानें गाकर हिमाचल समेत बाहरी राज्यों के लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले हंसराज रघुवंशी आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। पिछले करीब छह वर्षों में जिस तरह हंसराज नाम का यह सितारा संगीत जगत के आसमान में चमका है उसे हर हिमाचली ने देखा है। बहुत से लोग जो उन्हें आज देखते हैं वे शायद उनके संघर्ष के दिनों को नहीं जानते।

हमने हंसराज के उन दिनों के बारे में जानने का प्रयास किया जब वे पैसों की तंगी के दौर से गुजर रहे थे और जिला मंडी के एक कॉलेज की कैंटीन में काम करते थे। उन्होंने काफी समय तक वहां एक वेटर का काम भी किया। गांव से शहरों तक होने वाले जागरणों में जाकर वे गाते थे। उनकी आवाज इतनी बढिय़ा था कि जहां वे एक बार भजन या जागरण करके जाते थे तो लोग उनको सुनने के बाद अपने घरों में होने वाले धार्मिक समारोहों में उनकी ही मंडली को बुलाते थे। उन्होंने धीरे-धीरे सोशल मीडिया फेसबुक और यूट्यब पर उन्होंने अपने गीत पोस्ट करना शुरू किए और एक समय ऐसा आया कि हर किसी की जुबान पर उनके गाए गीत सुनाई देने लगे।

हंसराज का संगीत का सफर 14 साल की आयु से शुरू हो गया था। वे भगवान शिव के अन्नय भक्त हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर से ताल्लुक रखने वाले हंसराज उर्फ हंसू बाबा जी एक साधारण परिवार से आते हैं। सुर्खियों से वे हमेशा दूर रहते हैं इसलिए मीडिया से हमेशा बचते हैं। खबर.logy उन्हें आगे की सफर के लिए शुभकामनाएं देता है।

Khabar Logy
Author: Khabar Logy

Himachal Pradesh

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