कुंजू चंचलो एक डोगरी प्रेम गाथा है, जिसे लोक गीतों में आदर्श प्रेम के प्रतीक के रूप में गाया जाता है, जो नाटकीय रूप से राजा की सेना के एक सैनिक कुंजू और रानी की गोली चंचलो के अल्पकालिक प्रेम जीवन के आसपास बुनी गई है जिसे लोकगीत के माध्यम से अक्सर सुना जाता है…
इस ऑडियो में इस लोकगीत की जो आवाज आप सुन रहे हैं वे हिमाचल प्रदेश में कई वर्षों से शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत,लोक संगीत, अभिनय,मंचसंचालन, समसामयिक विषयों में स्तम्भकार तथा शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने वाले प्रो.सुरेश शर्मा जी की है जो इस समय राजकीय महाविद्यालय घुमारवीं में संगीत प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। प्रो.सुरेश शर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ एक प्रभावशाली आवाज़ के स्वामी हैं। यह लोकगीत सामान्य रूप से घर पर ही मोबाइल पर रिकार्ड किया गया है जो मुझे किसी माध्यम से प्राप्त हुआ है।
कुंजू चंचलो का संबंध हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले से बताया जाता है जो एक लोक गाथा है। यहाँ लोक गाथा एक धनाढ्य परिवार के पुत्र(कुंजू) और एक निर्धन परिवार की रूपवती कन्या(चंचलो) की प्रेम कहानी को दर्शाता है। इस गाथा के अनुसार कुंजू और चंचलो एक दूसरे से प्रेम करते है लेकिन ग्रामवासियों ने इनके प्रेम को अपमान समझा और कुंजू को मारने की धमकी दी और वही चंचलो ने लोगों में प्रतिशोध का भाव देखकर कुंजू को सलाह देती है की वह वह सामाजिक अपमान से बचने के लिए किसी दूसरे गांव में आश्रय ले तभी कुंजू सेना में भर्ती हो जाता है और तभी चंचलो के माता-पिता उसका विवाह एक ग्रामीण युवक से कर देते है। लोक गाथानुसार विवाह के बाद जब कुंजू चंचलो की तलाश में भटकता हुआ उस पनघट पर पहुँचता है बाद में उसका कत्लेआम कर दिया जाता है . उधर चंचलो प्रेमी के विरह में तड़पती है ।कहते हैं कि चंचलो को उसके प्रेमी कुंजुन है प्रेम की निशानी के रूप में चांदी के बटन उपहार में दिए होते हैं जो की चंचलो ने अपने कपड़ों में लगाए थे जब-जब चंचलो कपड़ों को धोती है तो बटनों को देखकर खूब रोती है . इसी विरहा की वेदना में यह लोकगीत लिखा गया जिसे समय-समय पर लोक कलाकारों ने अपने-अपने अंदाज में गाया…..
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh