हमीरपुर. पंचायत चुनावों से लेकर केंद्र तक की राजनीति में आज यूथ लीडरशिप की बात होती है। सारी सरकारें और राजनीतिक पार्टियां भी इस बात को एडमिट करती हैं कि भारत युवाओं को देश है लेकिन फिर भी प्रदेश के युवाओं को लंबे समय से उनके लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। दरअसल वर्ष 2013 में छात्र राजनीति पर जो फुटस्टॉप तत्कालीन सरकार ने लगाया था, उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया है। यह बात आज इसलिए निकली है कि हिमाचल प्रदेश स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में बुधवार को छात्र संघ चुनाव हुए। बड़ी हैरानी की बात है कि हिमाचल में चल रही सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तो छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश के सबसे पुरानी विश्वविद्यालय एचपीयू और इसके अधीन आने वाले सैंकड़ों महाविद्यालयों को छात्र संघ चुनावों से वंचित रखा गया है। ये युवा, पंचायती राज से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में वोटिंग तो कर सकते हैं लेकिन लेकिन अपने लिए वोटिंग नहीं करवा सकते। हालांकि वर्ष 1995 में भी एक अप्रिय घटना के चलते छात्र संघ चुनाव बंद हुए थे लेकिन 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने इनकी बहाल कर दिया था। लेकिन वर्ष 2013 के बाद प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से छात्र संघ चुनाव नहीं हुए।
अब जो सीएससी यूं कहें तो अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है उसमें कालेज के उन छात्रों को अध्यक्ष समेत अन्य ओहदे दिए जाते हैं जोकि कालेज के टॉपर होते हैं फिर चाहे उन्हें इसमें रुचि हो या न हो। ऐसे छात्रों का पूरा फोकस पढ़ाई पर रहता है ऐसे में वे कालेज से संबंधित अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाते न ही कालेज की समस्याओं और मुद्दों को उठा पाते हैं। यूं कहें तो यूथ लीडरशिप धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
Himachal के दो-दो मुख्यमंत्री छात्र राजनीति से आए
सियासी परिवेश पर नजर दौड़ाई जाए तो छात्र राजनीति से निकले नेताओं ने देश-प्रदेश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है। वर्तमान मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर छात्र राजनीति से निकलकर आए हैं। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा छात्र राजनीति से निकले हैं। उन्होंने तो वामपंथियों के गढ़ माने जाने वाले हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में एक बार एबीवीपी के अध्यक्ष की कमान भी संभाली थी। यही नहीं बीजेपी नेता विपन परमार, रणधीर शर्मा, सतपाल सत्ती, गोविंद ठाकुर, प्रो. राम कुमार, विजय अग्निहोत्री समेत कई नेता छात्र राजनीति से निकलकर आए हैं। कांग्रेस की बात करें तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर, आनंद शर्मा, केवल सिंह पठानिया, संजय रतन, सुरेश कुमार, कुलदीप पठानिया, प्रेम कौशल जैसे कई नेता सरकारों में विधायक, मंत्री समेत संगठन के बड़े ओहदों पर रह चुके हैं।
एसएफआई के हाथ में रही हमेशा एचपीयू
जुटाई गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश के अन्य कालेजों में तो एनएसयूआई और एबीवीपी के पैनत जीतते रहे लेकिन एचपीयू हमेशा वामपंथियों के हाथ में रही। छात्र नेताओं की मानें तो कहीं चुनाव न करवाने की वजह हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी शिमला में लगातार होने वाली एसएफआई की जीत तो नहीं। क्योंकि 1979 से लेकर एचपीयू पर लगातार एसएफआई का कब्जा रहा है। 1983 में जब एसएफआई और एबीवीपी में टाई हुआ था तो छह-छह महीने के लिए दोनों संगठनों से अध्यक्ष बने थे जिनमें बीजेपी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने छह महीने के लिए कमान संभाली थी। उसके बाद केवल एक बार वर्ष 2001 में एबीवीपी का पूरा पैनल एचपीयू में जीता था जिसमें बीजेपी के वर्तमान सचिव और युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र अत्री फुलफ्लेज अध्यक्ष बने थे।
आम परिवारों से निकले युवा लीडरशिप कैसे कर पाएंगे
युवा समाज में बदलाव लेकर आते हैं। छात्र राजनीति से नए चेहरे राजनीति में आते हैं नई सोच आती है। लोकतांत्रिक प्रणाली में नए लीडर निकलकर आते हैं। कुछ वर्षों से जिसतरह चुनाव बंद हुए हैं तो आम परिवारों से निकले युवाओं को तो कभी लीडरशिप करने का मौका ही नहीं मिलेगा केवल नेताओं के बच्चे ही आगे आएंगे और हमसब नारे लगाने तक ही सीमित रह जाएंगे।
टोनी ठाकुर, प्रदेश महासचिव एनएसयूआई
छात्रों को उनके अधिकार से वंचित रखा जा रहा
प्रत्यक्ष रूप से कालेजों में चुनाव न करवाना छात्रों को उनके अधिकार से वंचित रखना है। छात्र राजनीति से निकले कई नेता आज बड़ी राजनीतिक पार्टियों में बड़े ओहदों पर विराजमान हैं। जिस तरीके से प्रदेश में पिछले कई वर्षों से चुनाव नहीं हुए हैं उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि आने वाले समय में छात्र राजनीति का अस्तित्व की खत्म हो जाएगा जोकि यूथ लीडरशिप के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
कनिका, ज्वाइंट सेक्रेटरी एसएफआई ईकाई
छात्रों की समस्याएं केवल छात्र नेता ही समझ सकते हैं
छात्रों की समस्याएं केवल छात्र नेता ही करीब से समझ सकते हैं। छात्र संघ चुनावों में बकायदा वोटिंग होती थी जिसमें वही छात्र नेता चुनकर आते थे जो साफ छवि वाले हों और छात्रों की हर समस्या को समझते हों। इससे लीडरशिप पैदा होती थी। आज जिस तरीके से एससीए चुनाव करवाए जा रहे हैं उनमें कालेज की ओर से किसी को भी ओहदा देकर खड़ा कर दिया जाता है।
अनिकेत सिंह, उपाध्यक्ष एबीवीपी हमीरपुर इकाई
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh