शिमला. हीमोफीलिया एक ऐसा रोग जो आनुवंशिक होता है और इस बीमारी में शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता जिससे मृप्यु तक हो सकती है। अभी तक यह बीमारी लाइलाज मानी गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस बीमारी से ग्रसित लगभग 160 मरीज हिमाचल प्रदेश में भी हैं। इनमें सबसे अधिक जिला कांगड़ा में 38 मरीज हैं। जिला हमीरपुर में ऐसे मरीज बच्चों की संख्या 18 बताई जाती है। भारत में कुल आंकड़ा 1.3 लाख के करीब है।
इस बात का खुलासा विश्व हीमोफीलिया दिवस के अवसर पर हुआ। हर साल यह दिवस 17 अप्रैल को मनाया जाता है। स्वास्थ्य महकमा लगभग पूरा महीना इस दिवस को मनाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करता है।
मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक हीमोफीलिया आमतौर पर एक वंशानुगत रक्तस्राव विकार है जिसमें रक्त ठीक से नहीं जमता है। इससे सहज रक्तस्राव के साथ-साथ चोट या सर्जरी के बाद रक्त स्राव भी हो सकता है। रक्त में कई प्रोटीन होते हैं जिन्हें क्लॉटिंग कारक कहा जाता है जो रक्तस्राव को रोकने में मदद कर सकते हैं। उनके अनुसार यह एक अनवांशिक बीमारी है और परिजनों से उनके बच्चों को हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह बीमारी अधिकांश मेल बच्चों में पाई जाती है। इस बीमारी में ब्लीडिंग स्टेज के मुताबिक होती है। यदि यह टाइप एक का है तो इसमें ब्लीडिंग ज्यादा होती है। यदि लक्षण कम है तो बीमारी 8 से 12 हफ्तों में आ सकती है। इसका लक्षण सिर्फ ब्लीडिंग होती है जो की आंख नाक या अन्य हिस्से से हो सकती है। इस बीमारी का बचपन में ही पता लग जाता है। इसका अभी तक कोई स्थाई उपचार नहीं है लेकिन इस पर शोध कार्य चल हुए हैं। चिकित्सकों के अनुसार इस तरह के बच्चों का उपचार करने के लिए इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं। यह इंजेक्शन काफी महंगे होते हैं तथा यह नियमित तौर पर लगाने पड़ते हैं। इस बीमारी में जॉइंट पेन और जॉइंट स्वेलिंग हो जाती है। इस वजह से बच्चों को अधिक परेशानी होती है। हिमाचल सरकार अब इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को मुफ्त में इंजेक्शन लगाने की तैयारी कर रही है।
Author: Khabar Logy
Himachal Pradesh