खबरlogy की ग्राउंड रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश में पिछले दिनों भारी बारिश के कारण आसमान से बरसी आफत ने कई लोगों के सिर से घर की छत छीन ली है तो कईयों के दर- ओ- दीवार दो फाड़ कर दिए हैं . जहां-जहां तबाही बरसी है वहां का आलम ऐसा है कि परिवार अपने आस-पड़ोस या फिर रिश्तेदारों के घरों में आसरा लिए हुए हैं . हालांकि अपने घर की छत क्या होती है यह किसी को समझाने या बताने की आवश्यकता नहीं है. लेकिन हालात के मारे इन पीड़ित परिवारों के पास अभी फिलहाल कोई दूसरा चारा नहीं है. इस छोटी सी कहानी में हमने आपको यह बताने का प्रयास किया कि किस कदर मौसम की लोगों को बेघर कर दिया है और आज वे दूसरों की चौखट निहारने को मजबूर है। यह कहानी का एक पहलू है।
अब आते हैं कहानी के दूसरे पहलू पर जोकि शुरू होता है बारिश से प्रभावित क्षेत्र में प्रशासनिक अमले की दस्तक का. जैसे ही खबर लगती है कि कहीं इस तरह की त्रासदी आई है तो शुरू होती है प्रशासनिक अमले की मूवमेंट। अभी ये मूवमेंट कैसी है यह किसका बड़ा ही दिलचस्प है एक पटवारी से लेकर प्रशासन के बड़े अधिकारी समय-समय पर प्रभावित क्षेत्र में दस्तक देते हैं और सहानुभूति के दो शब्द और एहतियात बरतने की बात कहकर आगे निकल जाते हैं. उससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस क्षेत्र में इस तरह की आपदा सामने आती है वहां अधिकारियों का बड़ा ही , दिलचस्प स्टेटमेंट देखने और सुनने को मिलता है . नंबर 1 आप जल्द से जल्द अपना घर खाली कर दीजिए और सामान लेकर कहीं और शिफ्ट हो जाइए. नंबर दो अगर आप यह जगह नहीं छोड़ेंगे तो हमें आपको जबरन यहां से ले जाना पड़ेगा. बातें और भी हैं लेकिन मुझे लगता है यह 2 पॉइंट ही काफी है समझाने और बताने के लिए की प्रशासनिक कितनी जिम्मेदारी से अपना काम निभा रहा है. आदेश दे दिए जाते हैं की आप घर छोड़कर सामान लेकर कहीं और शिफ्ट हो जाएं लेकिन कोई यह नहीं बताता कि शिफ्ट कहां और कैसे होना है।
सारी उम्र का एक परिवार ने जो सामान पाई पाई जोड़कर जमा किया है उसे एक साथ कहां रखेंगे इस बात की और किसी का ध्यान नहीं जाता . साहब की ओर से तो बस एक बात कही जाती है की हमने फलां जगह पर बहुत सारे टेंट लगा दिए हैं आप वहां चले जाइए . फिर चाहे वह एरिया आपके घर से 2 किलोमीटर दूर है या 5 किलोमीटर इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. अरे साहब कैसे चले जाएं. ग्रामीण लोगों ने घरों में मवेशी पाले होते हैं उन्हें छोड़कर कौन जाएगा. उसे वक्त किसी का ध्यान इस और नहीं जाता की जिस गाय या बैल के नाम पर यही लोग बड़े-बड़े भाषण मंचों से दिया करते हैं उसे अपने ही घर में लावारिस छोड़कर कैसे चले जाएं . दूसरा पहलू यह है कि जहां आप इन ग्रामीणों को ले जाने की बात कर रहे हैं वह कौन सा सेफ्टी पॉइंट है . वह जगह भी तो आपदा प्रभावित क्षेत्र से 100 या 500 मीटर की दूरी पर है तो क्या यह डेंजर जोन नहीं है . क्यों नहीं ऐसा किया जाता कि जो लोग प्रभावित हो रहे हैं उनके लिए टेंट की व्यवस्था उनके घर के आस-पास ही की जाए. उनके लिए वहीं खाने-पीने का प्रबंध किया जाए.. क्यों लोगों के घरों में बार-बार आकर आप रोज उनसे एक ही पूछ रहे हैं क्या हुआ कैसे हुआ जबकि पूरी कहानी आप भी जानते हैं.
ग्रामीण जिन्हें और भी काम होते हैं वह दिन भर लाचार होकर अपने टूटे घर के सामने बैठकर यही इंतजार करते रहते हैं कि शायद कोई तो आएगा जो राहत के नाम पर कुछ देकर जाएगा. लेकिन ऐसा वास्तव में हो नहीं रहा यूं कहे तो प्रशासनिक अमले के लिए यह एक पिकनिक सपोर्ट बन गया है . रोज टीए बिल भरे जा रहे हैं और ऊपर रिपोर्ट दी जा रही है कि हमने इतनी बार क्षेत्र का दौरा कर लिया. क्या दौरा करना ही सब कुछ है. अब पूछा जाए कि आपने प्रभावित क्षेत्र में तुरंत कितना राशन पहुंचाया कितने लोगों को रिलीफ दिया. रिलीफ से याद आया कि इसमें भी पिक एंड चूज का खेल चला हुआ है . जिनके हाथ में लाठी है आज भी वही भैंस का मालिक है. जब खुद आप कह रहे हैं कि आप डेंजर जोन में है आप अपना घर छोड़ दीजिए लेकिन राहत के नाम पर 10 में से सिर्फ पांच ही लोगों को आप राहत दे रहे हैं तो बताइए की यह किस तरह की राहत बरसाई जा रही है। अगर राहत बांटने का यही एक पैमाना है साहब तो यह लोग आपकी राहत के बिना ही रह लेंगे . क्योंकि आज भी ग्रामीण संस्कृति में एक दूसरे की मदद करने और बुरे वक्त में काम आने की परंपरा जिंदा है। जितना खर्च आपकी गाड़ियों पर और आपके TA बिल पर रोजाना हो रहा है उससे तो बेहतर है की उतना पैसा किसी जरूरतमंद को दे दिया जाए.
जिला कांगड़ा का परमारनगर इसका ताजा उदाहरण
यह जो कहानी हमने आपको ऊपर बताने का प्रयास किया है हो सकता है प्रदेश में एक या दो केस ऐसे हो जहां ऐसा ना हो रहा हो लेकिन अगर हम ताजा तरीन वाकया की बात करें तो जिला कांगड़ा का परमार नगर इसका जीता जागता और ताजा उदाहरण है . यहां सोमवार को एक के बाद एक करके एक दर्जन से अधिक मकान देखते ही देखते लोगों की आंखों के सामने मिट्टी होते गए . यही नहीं इसके आसपास के इलाकों में भी कईयों के घर बीचो-बीच दो फाड़ हो गए तो कहीं बड़े-बड़े डंगे ढह गए . लगभग चार दिन पहले हुई इस घटना के बाद प्रशासनिक अमले की एक के बाद एक धनधनाती गाड़ियों ने सड़कों पर चहल पहल तो बढ़ा दी है लेकिन लोगों के लिए यह राहत कम और आफत ज्यादा दिखती है . दरअसल यहां भी राहत के नाम पर या तो उन लोगों को राहत का मरहम लगाया गया जिनके घर पूरी तरह से डैमेज हो चुके हैं या फिर वही पिक एंड चूस की पॉलिसी. यही नहीं ग्रामीणों की माने तो अभी तक प्रशासन की ओर से खाने-पीने के नाम पर कुछ भी नहीं दिया गया है. केवल आसपास के युवा क्लब अपने दम पर प्रभावितों के खाने पीने का प्रबंध कर रहे हैं . प्रशासन ने अगर कुछ दिया है तो वह है चार टेंट वह भी उन्हीं को मिलेंगे जो उस क्षेत्र में जाकर रहेगा जहां प्रशासन चाहता है फिर चाहे किसी को 2 किलोमीटर दूर जाना हो 4 किलोमीटर दूर जाना हो कोई बुजुर्ग हो अपाहिज हो, वह अपने आने जाने की व्यवस्था खुद करे , यूं कहे तो यहां भ सवारी अपने समाज की खुद जिम्मेदार है.