जमा दो की इस छात्रा के लोकगीत में झलका भाखड़ा विस्थापितों का दर्द, दर्शकों के छलके आंसू

हमीरपुर . पश्चिमी सभ्यता की के कारण गौण होती जा रही लोकल संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण आज हर किसी की जिम्मेदारी है। अच्छी बात यह है कि अपनी लोकल बोली, लोकगीत, इतिहास की घटनाओं को जानने और समझने के लिए विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ संस्कृति मंच भी इस दिशा में कमद बढ़ा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्कूलों में भी छात्र-छात्राओं को अपनी संस्कृति से जोडऩे के लिए उन्हें विभिन्न एक्टिविटी में शामिल किया जा रहा है। इसी कड़ी में हमीरपुर की जमा दो की छात्रा अद्विका शामा ने भी अहम भूमिका निभाई है।

दरअसल हाल ही में मंडी में आयोजित राज्य स्तरीय कला उत्सव में हिम अकेडमी पब्लिक स्कूल की इस छात्रा ने बेहतरीन प्रस्तुति देते हुए राज्यभर में तीसरा स्थान हासिल किया है। अद्विका ने अपने लोकगीत में जिला कांगड़ा के भाखड़ा विस्थापितों के उस दर्द को बयां किया जो उन्हें वर्षों पहले अपना घर-बार छोड़ते वक्त मिला था। जब लोगों की आंखों के सामने देखते ही देखते उनके घरबार भाखड़ा की लहरों में समा गए थे। हालांकि सरकार ने बाद में उनके लिए राजस्थान में मुरब्बे अलॉट किए लेकिन अपने घर, आस-पड़ोस सबकुछ छोड़कर जाने का जो दर्द था उसे अद्विका ने अपने गाए इस लोकगीत में प्रस्तुत किया।

अद्विका की माता सीमा और पिता अशोक शामा के अनुसार बेटी को अकसर लोकगीतों से काफी प्यार है और जब भी मौका मिले वो इन्हें गुनगुनाती रहती है।

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