शिमला. हिमाचल प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों आशीष शर्मा, होशियार सिंह और केएल ठाकुर का विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस्तीफ़ा स्वीकार न करने पर शनिवार को तीनों निर्दलीय विधानसभा परिसर में धरने पर बैठे। बता दें कि तीनो ने 22 मार्च को अपना इस्तीफ़ा अध्यक्ष को सौंपा था। लेकिन अभी तक विधानसभा स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने इस्तीफ़ा मंजूर नहीं किया है। इससे नाराज निर्दलीय विधायक शनिवार को विधानसभा परिसर पहुंचे और धरने पर बैठ गए।
तीनों निर्दलीय विधायक भाजपा का दामन थाम चुके हैं। विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र देने के बाद इन्होंने भाजपा की सदस्यता ली है। तीनों निर्दलीय विधायकों ने स्पष्ट किया कि इन्होंने बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से अपने इस्तीफे दिए हैं और स्पीकर को ये तत्काल मंजूर कर लेने चाहिए। विधायक आशीष शर्मा ने कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे होने के बावजूद स्पीकर पार्टी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा की जा रही अनदेखी से विवश होकर उन्होंने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को वोट किया था।
उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री बदले की भावना से काम कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है। उनके परिवार के कारोबार को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर इस्तीफ़ा मंजूर नहीं होता है तो जल्द ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
हमीरपुर. प्रदेश में गर्मी ने अभी भले ही सही तरीके से दस्तक न दी हो लेकिन यहां सियासी पारा अधिकतम तापमान पर नजर आ रहा है। हर दिन सियासी रूपी मौसम के नए-नए रंग यहां की जनता देख रही है। शुक्रवार का दिन प्रदेश की सियासत खासकर मु यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के गृहजिले में एक ओर जहां यादगार बन गया वहीं राजनीति की नई तस्वीर और कहानी भी बयां कर गया। जैसा कि सबको पता है कि सुजानपुर और बड़सर विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन-तीन बार के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा और इंद्रदत्त लखनपाल पिछले दिनों कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुक है। राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग करने के उपरांत प्रदेश में बदले राजनीतिक समीकरणों के बाद जब वे भाजपा में शामिल होने के बाद गुरुवार को वे अपने-अपने हलकों में पहुंचे तो प्रोटोकॉल के अनुसार भाजपा के मंडलों और अन्य पदाधिकारियों ने उनका स्वागत किया।
शुक्रवार को दोनों पूर्व विधायक पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार पूर्व मु यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल से मिलने और आशीर्वाद लेने उनके घर समीरपुर पहुंचे। दोनों नेताओं का समीरपुर पहुंचना राजनीति के अध्याय का वो घटनाक्रम था जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो। कल्पना इसलिए नहीं की होगी कि वर्ष 2017 के बाद से राजेंद्र राणा खुद को ऐसे फेमस चेहरे के रूप में प्रदेश ही नहीं पूरे देश में देख रहे थे जिन्होंने भाजपा के संभावित मु यमंत्री चेहरे को हराया था। वहीं धूमल परिवार समेत प्रदेश में बैठा उनका एक-एक समर्थक राणा को राजनीति में अपना धुर विरोधी मानता रहा। सियासी मंचों पर जहां राणा ने पूर्व मु यमंत्री पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं धूमल समर्थक भी कभी राणा पर सियासी हमला करने से पीछे नहीं हटे। आज वही राणा ऊपर से आशीर्वाद लेकर भाजपा के पूरे दल-बल के साथ अपने राजनीति के गुरु प्रो. धूमल का आशीर्वाद लेने के लिए उनकी दहलीज तक आ पहुंचे। राणा ने बकायदा धूमल साहब के चरण स्पर्श किए। लेकिन सवाल उठता है कि जिस तरह से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पूर्व सीएम जयराम ठाकुर राणा समेत कांग्रेस के सभी पूर्व विधायकों को अपना आशीर्वाद दे चुके हैं उसी तरह क्या पूर्व मु यमंत्री धूमल ने भी ‘विजयी भव:Ó का आशीर्वाद उन्हें दिया होगा। यह सवाल सबके दिमाग में उपजा है।
वहीं इंद्रदत्त लखनपाल जोकि कांग्रेस की उस मु य कड़ी सेवादल का अहम हिस्सा रहे हैं जोकि पार्टी की रीढ़ कही जाती है। हो सकता है उन्होंने पूर्व मु यमंत्री को डायरेक्ट कोई नुकसान न पहुंचाया हो लेकिन उन्होंने भी उस हलके पर सेंधमारी की है जहां बलदेव शर्मा रूपी प्रो. धूमल के हनुमान विराजमान हैं। जिन्हें वे तीन टर्म से लगातार हरा रहे हैं और उनका फिलहाल आगे का फाटक भी बंद कर दिया है। समीरपुर में शुक्रवार को हुई यह फीट टच सैरेमनी लोकसभा और उपचुनावों में किस के लिए खुशियां और किस के लिए उदासियां लेकर आती हैं यह देखना दिलचस्प होगा।
जनता को CM, नेताओं को टिकट की चिंता
उधर, दूसरी ओर यह देखकर भी हैरानी हो रही है कि हमीरपुर की आम जनता जहां अपने महबूब मु यमंत्री के लिए परेशान और बेचैन है वहीं यहां ओहदा लिए बैठे कांग्रेस के नेता खामोश नजर आ रहे हैं। गुरुवार को हमीरपुर में इतना बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हुआ लेकिन मजाल है कि एकआद को छोड़कर किसी ने कोई कड़ी प्रतिक्रिया दी हो। हमीरपुर के लोग तो यहां सबकुछ किनारे रखकर अपने मु यमंत्री के साथ खड़े नजर आ रहे हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं का पूरा फोकस अपनी टिकटों पर केंद्रित है।